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28 June 2013

निचली अदालतों पर हाईकोर्ट का शिकंजा

--- निर्देश------
-एक ही दिन में किया जाए जमानत अर्जी पर फैसला
-काम अधिक हो तो अन्य अदालतों में बांटे जाएं मामले
-नहीं चलेगा समय की कमी होने का बहाना
-सिर्फ संदेह के आधार पर नहीं होनी चाहिए गिरफ्तारी
जागरण ब्यूरो, इलाहाबाद : जमानत अर्जियों को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निचली अदालतों पर शिकंजा कसा है। अदालत ने निर्देश दिया है कि जमानत के लिए आने वाली अर्जियों पर हर हाल में उसी दिन विचार किया जाए। यदि कोर्ट का समय समाप्त हो जाता है तो अतिरिक्त समय देकर अर्जी का निस्तारण किया जाए। हाईकोर्ट ने कहा कि यदि किसी जज के पास काम अधिक हो तो भी जमानत अर्जियों को न रोका जाए। जिला न्यायाधीश ऐसे मामलों को अन्य न्यायाधीशों में बांटकर उनका निस्तारण सुनिश्चित कराएं।
हाईकोर्ट के इस आदेश से अब किसी भी निर्दोष व्यक्ति को अनावश्यक रूप से जेल में नहीं जाना पड़ेगा। अर्जी दाखिल होने के दिन ही सुनवाई होने से अपराधी जेल जाने से बच भी नहीं सकेंगे। अदालत ने कहा है यह दोनों स्थितियां ठीक नहीं हैं कि कोई व्यक्ति छूटने लायक हो और जेल चला जाए या फिर कोई जेल जाने लायक हो और अंतरिम जमानत के रूप में राहत पा जाए। यह समाज के लिए खतरनाक बात होगी। कोर्ट ने कहा कि निचली अदालतें समय न होने के कारण जमानत अर्जियों पर विचारण टाल नहीं सकतीं। किसी भी हालत में समाज के हित और सुरक्षा से समझौता नहीं किया जा सकता।
यह आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने संजय अरोरा व अन्य दो की ओर से दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत दाखिल याचिका को खारिज करते हुए दिया है। इस धारा के तहत हाईकोर्ट को किसी मामले में निचली अदालतों के मनमाने फैसलों पर अंकुश लगाने का अधिकार है। संबंधित याचिका में मुरादाबाद जिले के नागफनी थाना में दर्ज धोखाधड़ी के एक मामले में निचली अदालत में दाखिल आरोपपत्र को निरस्त करने की मांग की गई थी। अदालत ने कहा कि हाईकोर्ट को अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग निश्चित प्रक्रिया के सीमित दायरे में करना चाहिए। जहां किसी मामले में साजिश का संकेत मिले, या फिर न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग की या व्यर्थ की मुकदमेबाजी का अहसास हो, वहां इस तरह की शक्तियों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
अदालत ने कहा कि किसी को गिरफ्तारी का अधिकार है तो यह जरूरी नहीं कि वह गिरफ्तार कर ही ले। गिरफ्तारी का कानून वैयक्तिक अधिकार, स्वतंत्रता, विशेषाधिकार व कर्तव्य, जवाबदेही और दायित्व के बीच संतुलन कायम रखता है। सिर्फ संदेह के आधार पर गिरफ्तारी नहीं की जाना चाहिए।
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