किसान त्रस्त, पशु पस्त
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-खुजली, चर्मरोग, दमा जैसी बीमारी
-ऐसे खरपतवार का नाम सुनते ही माथे पर उभर आती हैं चिंता की लकीरें
-कहीं पार्थेनियम, अमेरिकन, डिस्को तो कहीं कांग्रेस घास नाम से प्रचलित
वाराणसी : भीषण गर्मी में भी बगैर किसी सिंचाई के ही हरा-भरा दिखने व हरियाली का अहसास कराने वाली 'गाजर घास' लोगों के जी का जंजाल बनी है। इस घास के संपर्क में आने मात्र से आमआदमी में खुजली, चर्म रोग, दमा, क्षय रोग, सूजन जैसी घातक बीमारी घर कर लेती है। वहीं बेजुबान पशुओं के लिए यह खतरनाक साबित हो रही है। इसके सेवन से पशुओं को पतली दस्त होने लग रही व चर्मरोग का शिकार होना पड़ रहा।
जिले में इस खरपतवार का नाम सुनते ही किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आती हैं। इससे किसान पूरी तरह त्रस्त हैं, वहीं पशु भी पस्त हैं। पार्थेनियम प्रजाति का यह खरपतवार अलग-अलग नामों से जाना जाता है। कहीं पार्थेनियम घास, गाजर घास, अमेरिकन घास, डिस्को घास तो कहीं कांग्रेस घास नाम से प्रचलित है। गाजर घास का प्रकोप मुख्यत: नदियों के किनारे होता है लेकिन धीरे-धीरे अब यह घास सड़कों के किनारे, बेकार खाली पड़ी व उपजाऊ खेती की जमीनों को भी अपनी गिरफ्त में लेती जा रही। आजकल यह हर खेत, मेड़, नहर, नदी, तालाब के समीप बहुतायत मात्रा में देखी जा रही है।
एक जैसा हाल, सभी बेहाल
जिले में गाजर घास का तेजी से बढ़ता प्रकोप सिर्फ चोलापुर और चिरईगांव ही नहीं पिण्डरा, हरहुआ, बड़ागांव, काशी विद्यापीठ, आराजीलाइन, सेवापुरी ब्लाकों में देखा जा सकता है। संबंधित ब्लाक व इनसे जुड़े दानगंज मिर्जामुराद, कछवां रोड, रोहनियां, लोहता, सारनाथ क्षेत्र प्रतिनिधियों के अनुसार इस कांग्रेस घास ने किसानों संग बेजुबान पशुओं को बेहाल कर रखा है।
क्या कहते हैं पशु चिकित्सक
पशु चिकित्साधिकारी डॉ. पीके शर्मा का कहना है कि गाजर घास खाने से पशुओं को रोकना चाहिए। कारण कि इसमें मौजूद हानिकारक रासायनिक तत्व दूध को जहरीला बना सकते हैं। दुधारु पशुओं को यदि थोड़ी सी गाजर घास खिला दी जाय तो उनका दूध कसैला हो जाता है। इस घास के ज्यादा संपर्क में रहने पर पशुओं को चर्म रोग व एलर्जी हो जाती है।
बचाव को क्या करें उपाय
कृषि विशेषज्ञ डॉ. रामसागर त्रिपाठी का कहना है कि गाजर घास पर नियंत्रण कर पाना मुश्किल हो रहा है। इसके विस्तार को रोकना जरूरी है। रोकथाम के लिए किसान भाइयों को पैराक्वाट डाइक्लोराइड दवा की चार से छह लीटर प्रति हेक्टेयर मात्रा को 700 से 800 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। ग्लाइफोसेट 2-4 डी सौडियम साल्ट जैसी दवाओं का प्रयोग भी किया जा सकता है। खेत में बोआई से पहले खाली भूमि में एट्राजिन 50 फीसद डब्लूपी दवा को दो से तीन किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने से गाजर घास का जमाव ही नहीं हो पाता है।
सफाए को अपनाएं जैविक विधि
डॉ. त्रिपाठी ने रासायनिक नियंत्रण की बजाय जैविक विधि से गाजर घास की रोकथाम को सुरक्षित व प्रभावी तरीका बताया। कृषि विशेषज्ञ देवमणि त्रिपाठी ने इसकी रोकथाम में जाइगोग्रामा बाइकोलो राटा नामक कीट को उपयोगी माना। जिला कृषि अधिकारी संजय सिंह ने इस घास के सफाए को जैविक विधि अपनाने पर जोर दिया।
रोकथाम का यह रास्ता और बेहतर
-गाजर घास के पौधे में फल व फूल आने से पहले ही उसे उखाड़कर जला दें।
-छोटे पौधों को गहरी जोताई करके मिंट्टी में मिला दें।
-खेत की मेड़ों, नालियों व अन्य खुली जगहों पर उग आईं गाजर घासों को उखाड़ कर जलाएं।
-घास को उखाड़ने से पहले हाथों में दस्ताने पहन लें।
यह न करें किसान भाई
-गाजर घास के पौधों को सड़ाकर कम्पोस्ट खाद न बनाएं। इसके बीज खाद के साथ दूसरे खेतों में भी जा पहुंचेंगे।
-पौधों को काटने के लिए बांके का प्रयोग न करें। अन्यथा इसके दाने छिटक कर खेतों में चले जाएंगे।
-गाजर घास कभी पशुओं को न खिलाएं।
-त्वचा को घास के संपर्क में न आने दें।
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