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09 June 2013

वरासत दर्ज करने में नहीं चलेगी लेखपालों की मनमानी

जल्द मिलेगी ऑनलाइन आवेदन की सुविधा
-लंबित मामलों की निगरानी हो सकेगी संभव

लखनऊ: वरासत के मामले दर्ज करने में लेखपालों की मनमानी अब बहुत दिनों तक नहीं चलने वाली। जल्द ही वरासत के मामले दर्ज कराने के लिए लोगों को ऑनलाइन आवेदन करने की सुविधा हासिल होगी। ऑनलाइन आवेदन की प्रक्रिया शुरू होने पर राजस्व परिषद में बैठे वरिष्ठ अधिकारी प्रदेश के कोने-कोने में वरासत के लंबित मामलों की संख्या जान सकेंगे और इसके जिम्मेदार संबंधित लेखपालों के खिलाफ कार्यवाही की जा सकेगी।
किसान की मृत्यु होने पर उसके उत्तराधिकारियों का नाम खतौनी में अविवादित वरासत के तौर पर दर्ज होता है। मौजूदा व्यवस्था में किसी किसान की मृत्यु की खबर मिलने पर लेखपाल गांव में जाता है, संबंधित परिवार की जमीन के दस्तावेज देखता है और उसके आधार पर अपनी रिपोर्ट तैयार करता है। लेखपाल अपनी रिपोर्ट राजस्व निरीक्षक के माध्यम से संबंधित तहसील को भेजता है जहां कम्प्यूटरीकृत खतौनी में वरासत दर्ज (अमल दरामद) की जाती है। वरासत दर्ज करने में अक्सर लेखपाल मनमानी करते हैं। वरासत दर्ज कराने के लिए लोगों को लेखपालों की गणेश परिक्रमा करने के साथ ही उनकी मुट्ठी भी गर्म करनी पड़ती है।
वरासत के लंबित मामलों की निगरानी की अभी कोई मुकम्मल व्यवस्था नहीं है। राजस्व परिषद की योजना है कि जल्द ही लोगों को लोकवाणी केंद्रों और सामान्य सुविधा केंद्रों पर इंटरनेट के माध्यम से वरासत दर्ज कराने की सुविधा दे दी जाए। परिषद के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक 'जब यह प्रक्रिया शुरू होगी तो लोग लेखपालों के चक्कर काटने की बजाय सामान्य सुविधा केंद्रों के माध्यम से वरासत दर्ज कराने के लिए आवेदन कर सकेंगे। हमें यह पता चल सकेगा कि किस गांव और किस लेखपाल के खाते में वरासत के सबसे ज्यादा आवेदन लंबित हैं। उस आधार पर हम संबंधित लेखपाल और राजस्व महकमे के अधिकारी-कर्मचारी को उत्तरदायी ठहरा सकते हैं। जब सब कुछ कम्प्यूटर की स्क्रीन पर होगा तो वरासत दर्ज करने की रफ्तार भी बढ़ेगी।'
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दाखिल-खारिज होते तत्काल मिलेगी खतौनी
राजस्व परिषद की यह भी मंशा है कि दाखिल-खारिज होते ही सामान्य सुविधा केंद्रों पर लोगों को खतौनी तत्काल सुलभ हो सके। अभी तहसीलों में प्रक्रिया पूरी होने पर तहसील के कम्प्यूटर पर दर्ज खतौनियों में दाखिल-खारिज की जाती है। महीने के आखिर में ऐसे सभी मामलों को सीडी के माध्यम से जिला सूचना विज्ञान केंद्र में इंटरनेट पर लोड किया जाता है। यह इसलिए होता है क्योंकि तहसीलों के कम्प्यूटर पर दर्ज डाटा इंटरनेट से सिंक्रोनाइज्ड नहीं है। इसकी वजह से महीने के शुरुआत में अपडेट की गई खतौनी भी महीने भर के बाद इंटरनेट पर उपलब्ध हो पाती है। राजस्व परिषद की मंशा है कि तहसीलों के कम्प्यूटर पर उपलब्ध दर्ज भूलेखों को इंटरनेट से सिंक्रोनाइज कर दिया जाए जिससे कि दाखिल-खारिज होते ही लोग इंटरनेट के जरिये खतौनी हासिल कर सकें। राजस्व परिषद के एक आला अधिकारी के मुताबिक यह व्यवस्था दो से तीन महीने में लागू हो जाएगी।
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